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साथियो

आप सभी को दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं

जैसा कि आप जानते हैं कि नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) 7 दिसम्बर 2015 को संसद पर अपनी मांगो को लेकर प्रदर्शन करेगा। सभी राज्य इकाइयों से राज्य और जिला स्तर पर आंदोलन करने की अपील की गई है। सभी जिलों में जिला अधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजे। साथ ही राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री के जरिये भी प्रधानमंत्री को ज्ञापन भेजा जाए। आपको ज्ञापन भेजा रहा है। जरूरत के अनुसार इसमें फेरबदल किया जा सकता है। जिलों की तरफ से जिला अध्य़क्ष और महामंत्री के ज्ञापन पर दस्तखत हों। राज्य स्तर पर दिए जाने वाले ज्ञापन में प्रदेश इकाई के अध्यक्ष और महासचिव के दस्तखत हों। अन्य पदाधिकारियों के नाम भी ज्ञापन में दिए जा सकते हैं।

आशा है आप जल्दी ही इस बारे में एनयूजे कार्यालय को जानकारी देंगे।

धन्यवाद

रतन दीक्षित

महासचिव

ज्ञापन

दिनांक

 

श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी

माननीय प्रधानमंत्री,

भारत सरकार,

नई दिल्ली।

 

माध्यम /द्वारा: 

 

विषय: पत्रकारों की सुरक्षा हेतु केन्द्र स्तर पर पत्रकार सुरक्षा कानून के निर्माण तथा मीडिया काउंसिल व मीडिया आयोग के गठन हेतु अनुरोध।

 

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

 

सादर प्रणाम,

 

गत कुछ वर्षांे से देश के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों पर बढ़ते हिंसक हमलों से देशभर के श्रमजीवी पत्रकार चिंतित हैं। सरे राह ही नहीं, बल्कि उनके घरों एवं दफ्तरों में घुसकर उनकी नृशंस हत्याएं की जा रही हैं। इन हत्याओं के पीछे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त ऐसे प्रभावशाली लोगों अथवा असामाजिक समूहों का हाथ होता है जिन्हें सदैव इस बात का डर सताता रहता है कि यदि मीडिया में उनके काले कारनामें उजागर हो गये तो उनके झूठे प्रभाव से आवरण हट जाएगा। इसलिए वे लोकतंत्र के पहरेदारों की आवाज को हमेशा के लिए बंद करने का दुस्साहस करने लगे हैं।

 

महोदय, पिछले कुछ वर्षों में 200 से अधिक पत्रकारों की देशभर में हत्याएं हो चुकी हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार व महाराष्ट्र में जून २०१५ के बाद से अब तक सात पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं। पिछले महीने ही पश्चिम बंगाल में स्थानीय निकाय चुनाव के दौरान कवरेज कर रहे दो दर्जन से अधिक पत्रकारों पर हिंसक हमला किया गया। असम में पिछले 16 वर्षों से लगभग हर साल पत्रकारों पर जानलेवा हमले हो रहे हैं। ऐसे हमलों का एकमात्र कारण आतंकवादियों, पुलिस व माफियाओं के इशारों के अनुरूप समाचार न लिखना होता है। नक्सल प्रभावित राज्यों में तो स्थिति और भी खराब है। राजनीतिक नेताओं का आंख मूंदकर समर्थन करने की बढ़ती प्रवृत्ति तथा माफियाओं की अवैध गतिविधियों को मिल रहे राजनीतिक संरक्षण के कारण ऐसी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। समाचार संकलन करने वाले पत्रकारों, छायाकारों तथा मीडिया से जुडे दूसरे लोगों को अक्सर हिंसक हमलों का शिकार होना पडता है। इसमें सबसे अधिक कष्टदायक बात यह है कि पुलिस की तरफ से समय पर प्रभावपूर्ण कार्यवाही नहीं होती। वे घटना की समय पर सूचना मिलने के बावजूद बहुत देर से ही घटनास्थल पर पहुंचते हैं।

 

नेशलन यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) तथा इसकी सभी संबद्ध राज्य ईकाइयों ने समय-समय पर इस प्रकार की घटनाओं की ओर संबंधित अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट किया है तथा उनके तुरन्त समाधान हेतु निवेदन किया है। लेकिन हमें यह कहते हुए अत्यंत खेद है कि पत्रकारों पर हिंसक हमलों की घटनाओं को अधिकारी तथा पुलिस बहुत हल्के में लेते हैं। वे उन्हें महज कानून व्यवस्था से जुड़ी सामान्य घटना के रूप में ही लेते हैं। इसलिए ऐसी सभी घटनाएं आम घटनाओं की भांति पुलिस रिकार्ड में दबकर रह जाती हैं जिन पर कभी ठोस कार्रवाई नहीं होती। इस कारण हमलावर बेखौफ होकर पत्रकारों पर हमले करते रहते हैं। आज पत्रकारों को हर दिन अलग-अलग प्रकार की धमकियों का सामना करना पडता है। समस्या इतना गंभीर रूप धारण कर चुकी है कि उसके समाधान हेतु अब गंभीर एवं ठोस प्रयास ही चाहिए। और यह ठोस प्रयास केन्द्र सरकार तथा संसद की कर सकती है।

 

इस ज्ञापन के माध्यम से हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) देश के प्रत्येक पत्रकार को सुरक्षा प्रदान करने की मांग नहीं कर रही है। चूंकि कानून व्यवस्था कायम करने में संलग्न एजेंसियों व अधिकारियों के समक्ष पत्रकारों व मीडिया से जुडे़ दूसरे लोगों की सुरक्षा हेतु पर्याप्त कानूनी प्रावधान नहीं हैं इसलिए हमें हिंसक हमलों से बचाव हेतु संरक्षण की मांग करनी पड़ रही है। इस कमी को पूरा करने तथा लोकतंत्र के पहरेदार के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करने हेतु पत्रकारों को खास कानूनी संरक्षण हेतु विस्तृत कानून की सख्त जरूरत है। इसलिए आज एक स्पष्ट तथा विस्तृत पत्रकार सुरक्षा कानून की जरूरत है जिसमें साफ प्रावधान हों कि यदि पत्रकारों को किसी प्रकार की धमकी मिलती है, उन पर हमला होता है अथवा उन्हें किसी प्रकार से भी प्रताडि़त किया जाता है तो उस संबंध में पुलिस थाने में शिकायत दर्ज की जाए और उस शिकायत की जांच एसपी अथवा डीसीपी स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा की जाए। यदि संबंधित पुलिस अधिकारी आरोपियों को पकडने में असफल रहते हैं तो उसका जिक्र उनके ‘परफॉरमेंस रिकार्ड’ में ‘ब्लैक मार्क’ के रूप में दर्ज किया जाए।

 

इस संबंध में यह भी निवेदन है कि ऐसी सभी शिकायतों की जांच दो दिन के भीतर की जाए तथा अविलंब दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए। इसके अलावा जब किसी पत्रकार की हत्या हो अथवा उस पर जानलेवा हमला हो तो उस मामले की सुनवाई ‘फास्ट ट्रैक कोर्ट’ में की जाए ताकि समय पर पीडि़त को न्याय मिल सके। यह प्रावधान इसलिए जरूरी है क्योंकि ऐसे मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के महीनों तथा कभी-कभी तो सालों तक भी कोई कार्रवाई नहीं होती।

 

यहां पर इस बात का उल्लेख करना भी जरूरी है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में जब पत्रकार किसी घटना विशेष की कवरेज के लिए जाएं तो उनके साथ ‘आम लोगों की भीड़‘ की तरह व्यवहार न किया जाए। पुलिस अधिकारियों को साफ निर्देश दिया जाए कि वे उनकी मदद करें तथा पूर्ण सूचना प्रदान करें ताकि लोगों को घटना के संबंध में सही और पूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।

 

आज प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व ऑनलाइन मीडिया में उभर रही अनेक प्रकार की चुनौतियों और अस्वस्थ प्रवृत्तियों को देखते हुए हमें लगता है कि भारत सरकार को अविलम्ब मीडिया ‘काउंसिल गठित‘ करने की दिशा में कदम बढाने चाहिए ताकि लोकतंत्र के चैथे खंभे की मजबूती तथा इसके नैतिक मूल्यों को बरकरार रखा जा सके। मीडिया काउंसिल के विभिन्न प्रावधानों पर विस्तृत चर्चा के लिए सरकार पत्रकार संगठनों को कभी भी आमंत्रित कर सकती है। उसमें हम पूर्ण सहयोग का आश्वासन देते हैं। हमें लगता है कि वर्तमान प्रेस परिषद अधिनियम में संशोधन कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को इसके दायरे में लाने हेतु अविलम्ब कार्रवाई की जानी चाहिए। नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया एक दशक से भी अधिक समय से यह मांग करती आ रही है। हमारी इस मांग का प्रेस परिषद के कई पूर्व अध्यक्षों तथा अनेक कानूनविदों तथा संगठनों ने समर्थन किया है।

 

पिछले कुछ समय से समाचार पत्रों ने अपने मालिकों के इशारे पर प्रेस परिषद के निर्णयों से जुडी खबरों को भी अपने यहां स्थान देना बंद कर दिया है। इसका कारण यह है कि प्रेस परिषद अक्सर मीडिया में पैदा हो रही कमजोरियों तथा अस्वस्थ परंपराओं को उजाकर करती रहती है। जबकि मीडिया संस्थानों के मालिकों को वह पसंद नहीं है। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उभर रही अस्वस्थ्य परंपराओं पर अंकुश लगाने के लिए बनी संस्थाओं की तरफ से सिर्फ दिखावे की कार्रवाई होती है। इसलिए वहां समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों की तरफ से भी स्थिति को ठीक करने के लिए ईमानदार प्रयास नहीं हुए हैं। इसलिए नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स इंडिया मांग करती है कि प्रेस परिषद अधिनियम का विस्तार करते हुए एक नया कानून बनाकर मीडिया काउंसिल का गठन किया जाए ताकि मीडिया के विस्तार के साथ इसमें पैदा हो रही अनेक प्रकार की चुनौतियों तथा अस्वस्थ परंपराओं पर अंकुश लगाया जा सके। हम प्रस्तावित मीडिया काउंसिल में ऐसे प्रावधानों की व्यवस्था चाहते हैं जिनसे न केवल मीडिया की गलत हरकतों पर नजर रखी जा सके बल्कि श्रमजीवी पत्रकारों के हितों की भी रक्षा हो। इस प्रकार की एक प्रभावी व्यवस्था पत्रकार सुरक्षा कानून के अन्तर्गत ही की जा सकती है।