डिजिटल मीडिया में घटती विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾
रासबिहारी
à¤à¤¾à¤°à¤¤ में मीडिया के विसà¥à¤¤à¤¾à¤° के साथ ही चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ लगातार बढ़ती रही है। डिजिटल मीडिया के बढ़ते असर के बाद मीडिया की नैतिकता पर à¤à¥€ सवाल उठरहे हैं। निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾, पारदरà¥à¤¶à¤¿à¤¤à¤¾, नैतिकता और विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ की घटती साख के कारण मीडिया सवालों के घेरे में हैं। विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ का यह संकट पहले कà¤à¥€ इतना नहीं रहा। à¤à¤¾à¤°à¤¤ की मीडिया पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ से ही चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का सामना किया और आगे बढ़ती रही है। यह पहली बार हो रहा है कि बढ़ते संकट के बावजूद उससे निकलने का कोई रासà¥à¤¤à¤¾ निकालने की पहल नहीं हो रही है। मीडिया में काम करने वाले मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾ कमाने वाले पà¥à¤°à¤¬à¤‚धकों के आगे विवश हैं। à¤à¤¸à¥‡ में संपादक नाम की संसà¥à¤¥à¤¾ पूरी तरह तहस-नहस होती जा रही है।
देश में मीडिया की घटती साख को बार-बार चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€ दी जा रही है। मीडिया और राजनीति का à¤à¤• वरà¥à¤— देश में अघोषित à¤à¤®à¤°à¤œà¥‡à¤‚सी का आरोप लगा रहा है। वो à¤à¥€ तब जब देश में 800 से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ निजी चैनल हैं। इनमें आधे से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ खबरियां चैनल है। पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट मीडिया और इलैकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¿à¤• मीडिया के साथ ही डिजिटल मीडिया का तेजी से विसà¥à¤¤à¤¾à¤° हो रहा है। देश में मारà¥à¤š 2017 तक 1,14,820 पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ रजिसà¥à¤Ÿà¤°à¥à¤¡ थे। रजिसà¥à¤Ÿà¤°à¥à¤¡ किठगठपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ में 3.58 फीसदी की बढ़ोतरी बताई गई है। साफ है कि इलेकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥‰à¤¨à¤¿à¤• और डिजिटल मीडिया की बढ़ती लोकपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¤à¤¾ का पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट मीडिया की बढ़त पर कोई असर नहीं पड़ा है। 10 वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट मीडिया के समाचार पतà¥à¤°à¥‹à¤‚ की 2 करोड़ 37 लाख पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बढ़ी हैं। अखबारों का लगातार विसà¥à¤¤à¤¾à¤° हो रहा है। दस साल में 251 नई जगहों से अखबार निकाले गà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ केंदà¥à¤°à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€ 659 से बढ़कर 910 हो गई है। ऑडिट बà¥à¤¯à¥‚रो ऑफ सरà¥à¤•à¥à¤²à¥‡à¤¶à¤¨ (à¤à¤¬à¥€à¤¸à¥€) के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट मीडिया की पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° संखà¥à¤¯à¤¾ में 37 फीसदी की बढ़ोतरी हà¥à¤ˆ है। पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट मीडिया के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में करीब 5000 करोड़ का निवेश हà¥à¤† है। अखबारों की बिकà¥à¤°à¥€ में सरà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤• बढ़ोतरी उतà¥à¤¤à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤ में हà¥à¤ˆ है। जाहिर है हिनà¥à¤¦à¥€ अखबारों का दबदबा बढ़ा है। देश में सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥€ 46587 रोजाना निकलते हैं। दूसरे नंबर अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ के अखबार है। इनकी संखà¥à¤¯à¤¾ है, 14365। सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अखबार उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में छपते हैं। इनकी संखà¥à¤¯à¤¾ है 17736। अखबारों के मामले में दूसरे नंबर महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° का है। महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° में 15,673 रोजाना छपते हैं। à¤à¤¬à¥€à¤¸à¥€ के आंकडे बताते हैं कि पà¥à¤°à¤¿à¤‚ट मीडिया के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में 2021 तक 7.3 फीसदी चकà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¦à¥à¤§à¤¿ वारà¥à¤·à¤¿à¤• वृदà¥à¤§à¤¿ दर (सीà¤à¤œà¥€à¤†à¤°) की दर बढ़ोतरी के साथ 431 अरब रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ तक पहà¥à¤‚च सकती है। यह माना जा रहा है कि पूरी मीडिया इंडसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ 2419 अरब तक पहà¥à¤‚च सकती है। विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ रेवेनà¥à¤¯à¥‚ à¤à¥€ 2021 तक बढ़कर 296 अरब तक पहà¥à¤‚चने की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ जताई गई है। पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¸à¤µà¤¾à¤Ÿà¤°à¤¹à¤¾à¤‰à¤¸à¤•à¥‚परà¥à¤¸ की à¤à¤• रिपोरà¥à¤Ÿ में बताया गया है कि 2017-21 के बीच वारà¥à¤·à¤¿à¤• वृदà¥à¤§à¤¿ दर (सीà¤à¤œà¥€à¤†à¤°) 10.5 फीसदी होगी। टीवी की हिसà¥à¤¸à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ 2016 में 21,874 करोड़ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ थी, जो 2021 में 37,315 करोड़ रà¥à¤ªà¤ होगी। देश में पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ कारोबार साल 2016 में 38,601 करोड़ रà¥à¤ªà¤ था जो साल 2021 तक 44,319 करोड़ तक पहà¥à¤‚च जाà¤à¤—ा। इसकी वारà¥à¤·à¤¿à¤• वृदà¥à¤§à¤¿ दर 3.1 फीसदी होगी।
मीडिया में निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ को लेकर बार-बार सवाल उठते हैं। जाहिर है जब निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ ही नहीं होगी तो सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾, विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾, नैतिकता, सतà¥à¤¯à¤¤à¤¾ और पारदरà¥à¤¶à¤¿à¤¤à¤¾ नहीं होगी। मीडिया की साख पर उठते सवालों की à¤à¤• बड़ी वजह डिजिटल मीडिया का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° à¤à¥€ है। पहले अखबारों के पाठकों की संखà¥à¤¯à¤¾ इलाके तक ही सीमित होती थी। हिनà¥à¤¦à¥€ का कोई अखबार अगर पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ की राजधानी में छपता है तो उसकी किसी खबर की चरà¥à¤šà¤¾ होती थी। आज अखबारों की वेबसाइट पर à¤à¤• खबर आते ही चरà¥à¤šà¤¾ हो जाती है। डिजिटल मीडिया में खबर पर विवाद मचते ही उसे हटाने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ है। अखबारों और चैनलों में बिना जांचे-परखे खबरों में आगे रहने की होड ने à¤à¥€ साख पर संकट बढ़ा दिया है।
यह सब हो रहा है कि संपादक नाम की संसà¥à¤¥à¤¾ के पतन के कारण। इसकी à¤à¤• बड़ी वजह है कि मीडिया में कारपोरेट और राजनीति का बढ़ता दखल है। कई राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में राजनीतिक दलों के अखबार निकल रहे हैं तो उनमें निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ तो हो ही नहीं सकती है। इसी कारण आज पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ का छातà¥à¤° ही नहीं बड़े-बड़े पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¥€ यह नहीं बता पाते हैं कि किस अखबार में कौन संपादक है। à¤à¤¡à¤¿à¤Ÿà¤°à¥à¤¸ गिलà¥à¤¡ ऑफ इंडिया के सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को ही नहीं पता होता है किस अखबार में कौन संपादक है। अब अगर à¤à¤¸à¥€ हालत है तो यह साफ हो जाता है मीडिया के किसके नियंतà¥à¤°à¤£ में हैं। यही वजह है कि आज हर कोई मीडिया की साख पर सवाल उठा रहा है। साथ ही यह सोचने की बात है कि जिस का धन मीडिया में लगाया जा रहा है, उससे मीडिया की विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ और निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ गी समापà¥à¤¤ हो जाà¤à¤—ी तो नैतिकता की बात कौन करेगा। आज अखबारों और चैनलों के कितने मालिक जेलों में हैं। इससे यह तो साबित हो ही रहा है कि ये लोग नैतिकता लेकर मीडिया के धंधे में नहीं आà¤, बलà¥à¤•à¤¿ अपने हितों को फायदे के लिठमीडिया का दà¥à¤°à¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— कर रहे है।
देश के बड़े-बड़े नेता मीडिया को आतà¥à¤®à¤¾à¤µà¤²à¥‹à¤•à¤¨ करने की सलाह पिछले लंबे समय से देते आ रहे हैं। हमारे देश के राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿, उपराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤ªà¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ समेत तमाम नेता बार-बार मीडिया को सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° और निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤· तरीके से काम करने की नसीहत देते रहे हैं। हमारे देश के बड़े-बड़े पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° à¤à¥€ संगोषà¥à¤ ियों, टीवी चैनलों के बहसी कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ में और अखबारों में लेखों के जरिये मीडिया की गिरती साख पर चरà¥à¤šà¤¾à¤à¤‚ करते हैं, चिंता जताते हैं और बताते हैं कि मीडिया को कैसे काम करना चाहिà¤à¥¤ इनमें à¤à¤¸à¥‡ संपादक जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हैं, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पिछली 20-25 साल के दौरान अखबारों या चैनलों की कमान संà¤à¤¾à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤ मीडिया की पूरी दिशा-दशा बदल दी। इनमें तमाम à¤à¤¸à¥‡ संपादक हैं, जिनके कारà¥à¤¯à¤•à¤¾à¤² में पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को मीडिया संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को नौकरी से निकाला गया था। उस समय à¤à¤¸à¥‡ संपादकों ने ही पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की नौकरी खाने में बड़ी à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆ थी। आज à¤à¤¸à¥‡ तमाम बड़े-बड़े संपादक पूरà¥à¤µ होने पर रूदन करने में लगे हà¥à¤ हैं कि मीडिया को सà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¨à¥‡ की जरूरत है। बात सही है कि मीडिया में आ रही गिरावट में सà¥à¤§à¤¾à¤° लाने की जरूरत है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मीडिया को लेकर चिंता तो जताई जाती है पर असली बीमारी कà¥à¤¯à¤¾ है, उस पर कोई बोलने को तैयार नहीं है। मीडिया में काम करने वाले करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की हालत पर कोई कà¥à¤› कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बोलता है। आज मीडिया में काम करने वाले लोगों की हालत सबसे खराब है। मीडिया संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में काम करने वालों को हर समय यह डर सताता रहता है कि पता नहीं कब तक उनकी नौकरी सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ है। मीडिया संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में संपादकों की à¤à¥‚मिका सीमित होती जा रही है, मानव संसाधन और मारà¥à¤•à¥‡à¤Ÿà¤¿à¤‚ग विà¤à¤¾à¤— संपादकीय विà¤à¤¾à¤— पर हावी होता जा रहा है। संपादकों की तरफ से पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को कई अवसरों पर विजà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ लाने के लिठबाधà¥à¤¯ किया जाता है। à¤à¤• तरफ बढ़ते खरà¥à¤š के कारण पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को कम à¤à¥à¤—तान किया जाता है तो दूसरी तरफ टीवी चैनल और अखबारों का लगातार विसà¥à¤¤à¤¾à¤° हो रहा है।
टीवी चैनल हो या अखबार, वहां काम करने वाले पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ पर लगातार दवाब बढ़ता जा रहा है। मीडिया हाउस के करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को हर समय अपने नौकरी जाने का डर सताता रहता है। इसकी बड़ी वजह à¤à¥€ है कि कई बड़े-बड़े मीडिया संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में à¤à¤• की à¤à¤Ÿà¤•à¥‡ साथ निकाल दिया गया। कहीं कोई आवाज à¤à¥€ नहीं सà¥à¤¨à¥€ गई। वेड बोरà¥à¤¡ लागू करने की मांग के कारण हजारों पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को अखबारों से निकाल दिया गया। इसके साथ ही बड़े-बड़े मीडिया संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ ने छोटे मीडिया संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को अपने कबà¥à¤œà¥‡ कर लिया। इसके बाद हजारों पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को बाहर कर दिया गया। नौकरी दवाब के साथ ही पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को रिपोरà¥à¤Ÿà¤¿à¤‚ग के दौरान à¤à¥€ जूà¤à¤¨à¤¾ पड़ता है। हर साल पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ पर हमले होते हैं। पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की जानें जाती हैं। इस साल ही अà¤à¥€ तक पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ पर दो सौ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हमलों की घटनाà¤à¤‚ हà¥à¤ˆ हैं। दबावों के कारण पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की सेहत पर असर पड़ रहा है। नौकरी के साथ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ काम के दौरान दूसरे तनाव à¤à¥€ à¤à¥‡à¤²à¤¨à¥‡ पड़ते हैं। अपनी नौकरी बचाने के लिठउसे अपनी निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ और विशà¥à¤µà¤¸à¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ छोड़नी पड़ती है। ऊपर के आदेश पर खबरों के साथ छेड़छाड की जाती है। इन सबके कारण उपजते तनावों के कारण पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की औसत आयॠकम होती जा रही है। हम देश मीडिया की गिरती साख पर कितनी à¤à¥€ चरà¥à¤šà¤¾ करें, जब तक आम पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को नौकरी जाने का à¤à¤¯ सताता रहेगा, हम मीडिया में निषà¥à¤ªà¤•à¥à¤·à¤¤à¤¾ और विशà¥à¤µà¤¨à¥€à¤¯à¤¤à¤¾ की कमी पर रोते ही रहेंगे।